ऊ सिंहासन के सामूं ऐसो लगत हतो जैसे साफ सुतरो कांच को समुन्दर होबै, और सिंहासन के बीच में और चौगिर्द चार जनावर हते, जिनके आंगे और पाछें आंखई आंखें हतीं।
इन चारई जनावरन के छै छै पंखा हते, और उनके भीतर और चारऊ कोद आंखई आंखें हतीं; बे रात दिना बिना आराम करे जौ कहत रैत आंय, कि पवित्तर, पवित्तर, पवित्तर, पिरभू परमेसुर, महाबली, जौन पेंला हते, और अबै आंय, और जौन आबेवारे आंय।