4 फिन मैंने सरग से कोऊ कौ शब्द सुनो, कि हे मोरे जनो, ऊ में से कड़ आओ; कि तुम ऊके पापन में संग्गी न हो, कहूं ऐसो न होबै के ऊकी विपत तुम पे आ पड़े।
तब लूत ने कड़कें अपने दामादों हों, जिनके संगै ऊकी मोंड़ियों की पक्यात हो गई हती, समझा बुझाकें कई, “उठो, ई जागां सें कड़ चलो; कायसे यहोवा परमेसुर ई नगर हों नास करबे पै आय।” परन्त ऊ अपने दमादों की नजर में ठट्ठा करबेवारो जान पड़ो।
और कहत आव, अगर हम अपने पुरखन के दिनन में होते तो आगमवकतन की हत्या में उन के संग्गै न होते।
ईसे पिरभू कैत आय, कि उनके बीच से कड़ जाओ और अलग रओ; तो मैं तुम हां ग्रहण कर हों।
कोई बिसवासी पै झट्टई हाथ न धरियो और दूसरन के पाप में संग्गी न हुईयो: अपने हां साजो बनाए राखियो।
कायसे जौन ऐसे मान्स हां नमस्कार करत आय, बो मानो ऊके बुरे करमन में मिलो आय।