परन्त पिरभु कौ दिन भड़या घांई आ जै है, ऊ दिन आकास बड़ी हड़बड़ाहट की गरजन से जात रै है, सबरी चीजें बिलात तांती होकें पिघल जै हैं, धरती और ऊ पे के काम जल जें हैं।
ई लाने मैं तोहां सम्मति देत आंव, कि आगी में ताओ भओ सोना मोसे मोल ले कि सांचऊ में धनी हो जाबै; और सफेद उन्ना लैके पैर ले कि तोहां नंगेपन जैसी सरम न होबै; और अपनी आंखें आंजबे हां बढिया सुरमा लै ले, कि तोहां दिखान लगै।