35 और ऊके कान खुल गए, और ऊ की जीभ की गांठ भी खुल गई, और ऊ साफ-साफ बोलन लगो।
कि अंधरे हेरत आंय और लंगड़े निगत आंय; कोढ़ी शुद्ध करे जात आंय और बहिरे सुनत आंय, मुरदा जिलाए जात आंय; और कंगालन हां भलो सन्देसो सुनाओ जात आय।
और ऊ उठो, और तुरतईं खटिया उठा के और सब के सामूं से निकल के चलो गओ, ई पै सबरे अचम्भे में भए, और परमेसुर की बड़वाई करके कैन लगे, कि हमने एैसो कभऊं नईं देखो।
और सरग कोद हां तक के सांस लई, और ऊसे कओ; इप्फत्तह, यानी खुल जा।
तब ऊ ने उने चिताओ कि कोऊ से न कहियो; लेकिन जितनौ ऊ ने उने चिताओ उतनईं बे और परचार करन लगे।