फरीसी ठांड़ो होकें अपने हिये में जौ बिन्तवाई करन लगो, कि हे परमेसुर मैं तोरो धन्नवाद करत आंव, कि मैं और मान्सन घांई अन्धेर करबेवारो, अन्यायी और परत्रिया भोगी नईंयां, और न ई चुंगी लेबेवारे के घांई आंव।
सो अब हे लांछन लगाबेवारे, तें कोनऊ काय न होबै; तो लौ कछु उत्तर नईयां! कायसे जौन बात में तें दूसरन पे लांछन लगात आय, ओई बात में अपने हां भी दोषी ठहरात आय, कायसे जैसो लांछन तें लगात आय, तें सोई ऊंसई काम करत आय।