11 जो कोऊ नगर या गांव में तुम पिड़ो, तो पूंछतांछ करियो कि उते कोऊ भलो जनो है? और विदा होबे लौ, ओई के इते रहियो।
गैल के लाने न झोला धरोे, और न दो कुरता, न पनईंयां और न लठिया लईयो, कायसे मजूर हां ऊकौ भोजन मिलबो चईये।
जब तुम ऊ घर में पिड़ो, तो सान्ति की आसीष दईयो।
और ऊ ने उनसे कओ; जां कऊं तुम कौनऊं घर में उतरौ तो जब लौ उतै से विदा न होओ, तब लौ ओई में ठैरे रओ।
जौ तक के सबरे मान्स कुड़कुड़ा के कैन लगे, बो तो एक पापी मान्स के घरै जा उतरो आय।
जौन कोऊ घर में तुम ठहरो, उतईं रओ; और उते से आखरी दिना कड़ो।
जब ऊ ने और ऊके घर बारन ने बपतिस्मा लओ, तो हम से बिनती करी, अगर तुम मोय परमेसुर की बिसवासिनी मानत आव, तो आके मोरे घरै ठहरो; और बा हमें मनाकर ले गई।