पिरभु अपने कौल के विषय में अबेर नईं करत, जैसो कि कितेक जनें समजत आंय; बो नईं चाहत कि कौनऊं मान्स नास होबे; परन्त जौ कि सबई हां हिया बदलबे कौ मौका मिले।
उन ने ऊं ची आवाज में कहो; हे मालक, हे पवित्तर और सांचे जने; तुम कब लौ न्याव न कर हौ? और धरती पै के रहबेवारे जिन ने हमें मार डालो ऊ को पलटा कब लौ न लै हौ?
ऐई से जे परमेसुर के सिंहासन के सामूं आंय, और उनके मन्दर में दिन रात उनकी सेवा करत आंय; और जो सिंहासन पै बिराजे आंय, बे अपनी छत्र छाया उन पै राखें रै हैं।