4 न्यायधीश ने तो कितने टैम लौ टालमटोल करी पर आखर में हिये में सोस के कैन लगो, जौ सई आय कि न मैं परमेसुर से डरत आंव, और न मानस की कछु परवाय करत आंव।
तब बो अपने हिये में सोसन लगो, कि मैं का करों, कायसे मोरे ऐंगर जांगा नईंयां, जिते अपनो पजो भओ नांज हां धरों।
तब भण्डारी सोचन लगो, अब मैं का करों? कायसे अब मोरो मालक मोसे भण्डारी कौ काम छीन रओ आय: माटी तो मोसे खोदी नईं जात: और भीख मांगबे से मोय सरम आ है।
कोऊ नगर में एक न्यायधीश रैत हतो; जौन न परमेसुर से डरत हतो और न कौनऊ मान्स की परवाय करत हतो।
और ओई नगर में एक बिधवा रैत हती: जौन ऊके ऐंगर आ आकें कओ करत हती, कि मोरो न्याव चुका के मोय मु ई से बचा।
तब दाख के बगीचा के मालक ने कओ, मैं का करों? मैं अपने प्यारे पूत हां पठै हों का जाने बे ऊकौ मान करें।
जब हमाए मताई बाप हम हां सीख देत आंय, तो अपन उन हां मान देत आंय, पिता परमेसुर से सीख लेबें कि अपने बिलात दिना जियत रैबें।