2 कोऊ नगर में एक न्यायधीश रैत हतो; जौन न परमेसुर से डरत हतो और न कौनऊ मान्स की परवाय करत हतो।
और ओई नगर में एक बिधवा रैत हती: जौन ऊके ऐंगर आ आकें कओ करत हती, कि मोरो न्याव चुका के मोय मु ई से बचा।
न्यायधीश ने तो कितने टैम लौ टालमटोल करी पर आखर में हिये में सोस के कैन लगो, जौ सई आय कि न मैं परमेसुर से डरत आंव, और न मानस की कछु परवाय करत आंव।
तब दाख के बगीचा के मालक ने कओ, मैं का करों? मैं अपने प्यारे पूत हां पठै हों का जाने बे ऊकौ मान करें।
जब हमाए मताई बाप हम हां सीख देत आंय, तो अपन उन हां मान देत आंय, पिता परमेसुर से सीख लेबें कि अपने बिलात दिना जियत रैबें।