जब तुम उपास करौ, तो कपटियन घांई तुमाए मों पे उदासी नईं दिखै, कायसे बे अपनो मों बनाए रहत आंय, जीसे मान्स उन हां उपासो जानें; मैं तुम से सांची कहत आंव, कि बे अपनो फल पा चुके।
जब तें बिन्तवाई करे, तो कपटियों जैसो न बन कायसे मान्सन हां दिखाबे के लाने सभाघरन और गैलों के मोड़ पे ठांड़े होकें बिन्तवाई करबो उन हां उमदा लगत आय; मैं तुम से सांची कैत आंव, कि बे अपनो फल पा चुके।
हे धरम पण्डतो तुम पे हाय! तुम पौदीना और सुदाब, और सब भांत के सागपात कौ दसमों हींसा देत आव, पर न्याय और परमेसुर के प्रेम हां टाल देत आव: चईये तो हतो कि इन हां सोई करत रैते और उन हां सोई न छोड़ते।
ऐई भांत से तुम सोई, जब उन सब कामन हां कर चुको जिन कौ हुकम तुम हां दओ गओ हतो, तो कओ, कि हम निकम्मे चाकर आंय; कि जौन कछु हम हां करबो चईये हतो हम ने बस ओई करो आय।