32 छटवीं चिठिया नप्तालियों के कुलों अनसार उनके नाओं पै कड़ी।
राहेल की दासी बिल्हा के मोंड़ा जे हते; मतलब दान और नप्ताली।
नप्ताली एक छूटी भई हिरनी आय, बा सुन्दर बातें बोलत आय।
और बो नासरत हां छोड़ के कफरनहूम में आओ जो बड़े ताल के तीरे जबूलून और नपताली परगना में आय उते जाके रहन लगो।
कुलों के अनसार आशेरियों के गोत्र कौ हींसा नगरों और गांवों समेंत जौई ठैरो।
उनकी सीमा हेलेप सें, और सानन्नीम के बांज बृक्ष सें अदामी-नेकेब और एब्नेल सें होकें, और लक्कूम हों जाकें यरदन पै कड़ी;