उनकी निजी जमीन और बस्तियां गांवों समेंत बेतेल और पूरब कुदाईं नारान और पच्छिम में और गांवों समेंत गेजेर, फिन गांवों समेंत शकेम, और गांवों समेंत अज्जा हतीं;
परन्त जौन कनानी गेजेर में बसे हते उनहों एप्रैमियों ने उतै सें नें काड़ो, ई लाने बे कनानी उनके मजारें आज के दिना लौ बसे आंय, और बंधुआ मज़दूर के जैसे काम करत आंय।
फिन ओई सीमा तप्पूह सें कड़कें, और पच्छिम कुदाऊं जाकें, काना के नरवा लौ होकें समंदर पै कड़ी। एप्रैमियों के गोत्र कौ हींसा उनके कुलों के अनसार जौई ठैरो।
फिन उतै सें बा सीमा काना के नरवा लौ उतरकें ऊके दक्खिन कुदाऊं लौ पोंच गई; जे नगर जबकि मनश्शे के नगरों के मजारें हते तब भी एप्रैम के ठैरे; और मनश्शे की सीमा ऊ नरवा की उत्तर कुदाऊं सें जाकें समंदर पै कड़ी;