हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो तुम पे श्राप! कायसे तुम मान्सन के विरोध में सरग के राज्य कौ द्वार बन्द कर देत आव, तुम न तो खुद जात आव और न जाबे वारन हां भीतर जान देत आव।
ऊ ने जा ई लाने नईं कई, कि ऊहां कंगालन की चिन्ता हती, परन्त ई लाने कि बो भड़या हतो और ऊके ऐंगर रुपईयन कौ थैला रैत हतो, और जौन कछु ऊ में डालो जात हतो, बो ऊहां निकाल लेत हतो।
जीवन की रोटी जौन सरग से उतरी बो मैं आंव। जो कोऊ ई रोटी में से खा है, तो बो सदा लौ जीयत रै है, और जौन रोटी मैं जगत के जीवन के लाने दै हों, बो मोरो मांस आय।