कोऊ मान्स दो मालकन की चाकरी नईं कर सकत, कायसे बो एक से बैर और दूसरे से प्रेम रख है, या एक से मिलो रै है और दूसरे हां नैचों जान है; “तुम परमेसुर और धन दोई की भक्ति नईं कर सकत”।
उन की आंखें व्यभिचार से भरी आंय, बे अधरम करे बिना रै नईं सकत, बे चंचल मन वारन हां फुसला लेत आंय; उनके हिये लालच करबे की लत में पड़े आंय, बे सन्ताप के लरका बच्चा आंय।
ऊ ने अपनी सबरी चिठियन में सोई इन बातन कौ बयान करो आय उन में कछु बातें ऐसी आंय, जिन कौ समजबौ कठन आय, मूरख और चंचल मान्स उन के मतलब को पवित्तर पोथी की और बातन की भांत ऐंचतान के अपने ई नास कौ काज बनात आंय।