12 तब बरसा चालीस दिना और चालीस रात लगातार पृथ्वी पै होत रई।
तब पृथ्वी पै चालीस दिना लौ जल-प्रलय होत रओ; और पानूं बेजा बढ़तई गओ, जीसें जहाज ऊपर उठन लगो; और ऊ पृथ्वी पै सें ऊंचो उठ गओ।
कायसे अब सात दिना और बीतबे पै मैं पृथ्वी पै चालीस दिना और चालीस रात लौ पानूं गिरात रैहों; और जितेक प्राणी मैंने रचे आंय उन सब हों धरती के ऊपर सें नास कर दैहों।”
और गैरे समंदर के सोता और आकास के झरोखा बन्द हो गए; और ऊसें जो बरसात होत हती बा सोई रुक गई;
बो चालीस दिना, और चालीस रात, उपासो रहो, और ऊहां भूख लगी।
ऐई से ऊ जुग कौ संसार पानू में डूब के नास हो गओ।