फरीसी ठांड़ो होकें अपने हिये में जौ बिन्तवाई करन लगो, कि हे परमेसुर मैं तोरो धन्नवाद करत आंव, कि मैं और मान्सन घांई अन्धेर करबेवारो, अन्यायी और परत्रिया भोगी नईंयां, और न ई चुंगी लेबेवारे के घांई आंव।
कायसे हम अपने हिये की जा बात मानत आंय, कि और ऊ पै बड़वाई करत आंय, कि संसार में और तुमाए बीच हमाई चाल परमेसुर को भाबेवारी पवित्तर और सांची हती, और ऐसो संसार के ज्ञान से नोंई, अकेले परमेसुर की दया से भई।