13 परन्त औरन ने उन की ठिठोली कर के कओ, कि बे तो नई दारू के नसा में आंय।
जे नसे में नईंयां, जैसो तुम समज रए आव, कायसे अबै तो पहर ही दिन चढ़ो आय।
सो जदि समाज एक जांगा जुड़ी होबे, और सबरे जने दूसरी दूसरी भाषा बोलें, और जौन पढ़ो लिखो नईंयां और बिसवास न करबेवारे मान्स भीतरे आ जाबें, तो का बे तुम हां पगला न कै हैं?
और दाखन के रस पीके बेसुर्त न हो, कायसे ऐसे में बुरय काम होत आंय, पै आत्मा से भरत जाओ।