हे मोरे भईया हरौ, मैं खुद तुमाए बारे में पक्के से जानत आंव, कि तुम सोई आप ही भलाई से भरे और पिरभु परमेसुर की समज से भरेपूरे आव और एक दूजे हां चिता सकत आव।
और जदि मैं अगमवानी कर सकों, और सब भेदों और ज्ञान को समजों, और मोय इते लौ पक्को बिसवास होबे, कि मैं पहारवन हां हटा देओं, परन्त प्रेम न धरों, तो मैं कछु लौ नईंयां।
कायसे एक दूसरे में को अन्तर कर सकत आय? और तोरे ऐंगर का आए जौन तेंने दूसरे से न पाओ होबै: और जब तेंने दूसरे से पाओ आय, तो ऐसो घमण्ड काय करत आय, कि मानो नईं पाओ?
अकेले ऊके आबे से नईं परन्त ऊके मन के चैन से, जौन ऊहां तुम लोगन से मिलो हतो; ऊ ने तुमाई मरजी, और तुमाए पिराते और तुमाई लगन के लाने हम हां सुनाओ, जीसे मोहां और आनन्द भओ।
तें जो कैत आय, कि मैं बड़ो धनी आंव, और धनवालो हो गओ आंव, और मोहां कोनऊ बस्त की कमी नईंयां, और जौ नईं जानत, कि तें अभागा और तुच्छ और कंगाल और अन्धरा और नंगो आय।