21 मोरो कैबो मानो छोटे होकें, जैसे हम कमजोर हते; अकेले कोई बात में कोनऊं हिम्मत बांधत हतो (मैं मूरखता से कैत आंव) तो मैं सोई हिम्मत बांधत आंव।
कायसे कैत आंय, कि उनकी चिठियां बजनदार और मतलब से भरी आंय; अकेले जब देखत आंव, तो ऐसो लगत कि बो देह को नरम और बोलबे में ढीलो आय।
तुम मोरी तनक मूरखपन सह लेते तो कैसो नोंनो होतो; सांची आय कि तुम मोरी सह लेत आव।
ऐसे बेधड़क बड़े बोल जौन मैं कैत आंव बे पिरभू के बताए जैसे नोंईं अकेले मानो मूरख घाईं कैत आंव।
ईसे में तुमाए पीठ पाछें जौ लिखत आंव, कि उते आके जौन अधकार मोहां मिलो आय जीहां पिरभू ने बिलोरबे हां नईं अकेले बनाबे हां मोहां दओ आय, कर्रे होकें कछु करने न पड़े।
मान और अपमान से, बुरए नाओं और भले नाओं से, ऐसो लगत तो आय कि बुरई सलाह देत हो अकेले सांचे आंय।