11 जौन ऐसो कैत आय, बो सोच लैबे, जैसे हमाए न होबे पै चिठियन में हमाए बचन आंय, ऊंसई तुमाए सामूं हमाए काम सोई हुईयें।
कायसे कैत आंय, कि उनकी चिठियां बजनदार और मतलब से भरी आंय; अकेले जब देखत आंव, तो ऐसो लगत कि बो देह को नरम और बोलबे में ढीलो आय।
हमाई जा हिम्मत नईंयां कि हम अपने हां उनके संग्गै गिनें, कि अपनो मिलान उनसे करें, जौन अपनी बड़बाई करत, और एक दूसरे से अपनो मिलान करके मूरख बनत आंय।
कायसे मोहां डर आय, कहूं ऐसो न होबे, कि मैं आके जैसो चाहत आंव, और जैसो तुम हां नईंर् चाहत ऊंसई पाओं; और मोय सोई जैसो तुम नईं चाहत वैसो पाओ, कि तुमाए भीतरै लड़ाई, बैर, गुस्सा करबो, दूसरन को बिरोध, जलन, चुगली करबो, अभमान और बखेड़े होबें।
ईसे में तुमाए पीठ पाछें जौ लिखत आंव, कि उते आके जौन अधकार मोहां मिलो आय जीहां पिरभू ने बिलोरबे हां नईं अकेले बनाबे हां मोहां दओ आय, कर्रे होकें कछु करने न पड़े।