परन्त मैं जो कछु आंव, परमेसुर की दया से आंव: और उनकी जौन दया मो पे भई आय, बा अकारथ नईं गई; परन्त मैंने उन सबरन से बढ़के मैनत सोई करी: जानो कि जौ मोरी कुदाऊं से नईं भओ परन्त परमेसुर की दया से जौन मो पे हती।
कायसे हम अपने हिये की जा बात मानत आंय, कि और ऊ पै बड़वाई करत आंय, कि संसार में और तुमाए बीच हमाई चाल परमेसुर को भाबेवारी पवित्तर और सांची हती, और ऐसो संसार के ज्ञान से नोंई, अकेले परमेसुर की दया से भई।
ऐई से मैं जे दुख उठा रओ आंव, और लजात नईंयां, कायसे मैंने जिन पै बिसवास धरो आय उन हां जानत आंव; और मोहां पक्को आय, कि जौन जीवन मैंने उन हां दे दओ आय ऊहां साजो धरे रै हैं।
कायसे जदि तुम ने अधरम करके घूंसे खाए और गम्म खाई, तो ईमें का बड़वाई की बात आय? परन्त जदि साजो काम कर के पीड़ा झेलत आव और धीरज धरत आव, तो जौ परमेसुर हां साजो लगत है।