कोऊ मान्स दो मालकन की चाकरी नईं कर सकत, कायसे बो एक से बैर और दूसरे से प्रेम रख है, या एक से मिलो रै है और दूसरे हां नैचों जान है; “तुम परमेसुर और धन दोई की भक्ति नईं कर सकत”।
कौनऊं चाकर दो मालकन की सेवा नईं कर सकत: कायसे बो एक से बैर और दूसरे से प्रेम कर है; या एक से मिलो रै है और दूसरे हां ओछो जान है: तुम परमेसुर और धन दोईयन की सेवा नईं कर सकत।
जदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनों से प्रेम करतो, परन्त ईसे कि तुम संसार के नईं आव, पर मैंने तुम हां संसार में से नबेर के बायरें काड़ लओ आय, ई लाने संसार तुम से बैर रखत आय।
और ई संसार के जैसे न बनो; पर तुमाए समज के नए हो जाबे से तुमाओ चाल सोई बदलत जाबे, जी से तुम परमेसुर की साजी और भावती, और सिद्ध अभलाखा अनुभव से मालूम करत रओ।
कायसे रुपईया कौ लोभ सब परकार की बुराईयन की जड़ आय, जीहां पाबे की कोसिस करत भए कितेक जनें बिसवास की गैल से भटक के अपने आप हां बिलात परकार के दुखों से छलनी कर लओ आय।
हमाए पिता परमेसुर के लेखे में सुद्ध और साफ भक्ति जा आय, कि हम अनाथों और बिधवाओं की दुख पीड़ा में उन की सुध लेबें, और अपने आप हां संसार की बातन से दूर राखें।
हे पापीनिओ, का तुम नईं जानत, कि संसार से दोस्ती करबो परमेसुर से बैर धरबो आय? सो जो कोऊ संसार कौ दोस्त होबो चाहत आय, बो अपने आप हां परमेसुर कौ बैरी बनात आय।