13 का तुम हां पता नईंयां? कि जौन पवित्तर बस्तन की चाकरी खुसामद करत आंय, बे मन्दर में से खात आंय; और जौन वेदी की सेवा करत आंय; तो जो कछु वेदी पे चढ़ाओ जात आय ओई में से खात आंय?
का तुम नईं जानत, जीकौ हुकम मानबे हां तुम अपने आप हां चाकर घांई सौंप देत आव, ओई के चाकर आव: और जी की मानत आव, चाए पाप के, जीसे मौत मिलत आय, चाए हुकम मानबे से, जीकौ अन्त धार्मिकता आय।