परन्त पिरभु कौ दिन भड़या घांई आ जै है, ऊ दिन आकास बड़ी हड़बड़ाहट की गरजन से जात रै है, सबरी चीजें बिलात तांती होकें पिघल जै हैं, धरती और ऊ पे के काम जल जें हैं।
और मैंने फिन तको, तो आकाश के बीच उकाब हां उड़त और ऊंची आवाज में ऐसो कैत सुनो, कि उन तीन सरगदूतन की तुरही को फूकबो बचो आय, धरती पै रैबेवारे मान्सन पै हाय! हाय! हाय!