17 जदि सबरी देयां आंख ही होती, तो सुनबो कां होतो? जदि सबरी देयां कान ही होती, तो सूंघबो कां होतो?
और जदि कान काबे; कि मैं आंख नईंयां, ई लाने देयां कौ नईंयां, तो का बो ई काजें देयां कौ नईंयां।
परन्त सांचई परमेसुर ने अंगों हां अपनी चाहना अनसार एक एक कर के देयां में धरो आय।
आंख हाथ से नईं कै सकत, कि तें मोरे काम कौ नईंयां, और न मूड़ गोड़न से कै सकत आय, कि तें मोरे काम कौ नईंयां।
का सबरे चेला आंय? का सबरे अगमवकता आंय? का सबरे गुरूजन आंय? का सबरे अचरज के काम करबेवारे आंय?