1 अर जो सिंहासन पै बेठ्या था, मन्नै उसकै सोळे हाथ म्ह एक किताब देक्खी, जो भीत्त्तर अर बाहरणै लिक्खी होड़ अर वा सात मोंहर लाकै बन्द करी गई थी।
उसनै अपणा सोळा पाँ समुन्दर पै, अर ओळा पाँ धरती पै धरया, अर उसके हाथ म्ह एक छोट्टी सी खुली होड़ किताब थी,।
अर जो उसपै बेठ्या सै, उसकी चमक सूर्यकान्त मणि अर माणिक्य पत्थर के समान थी, अर उस सिंहासन कै चौगरदेकै मेघ-धनुष था, उसकी चमक पन्ने के समान की थी।
अर जिब वे प्राणी उसकी जो सिंहासन पै बेठ्या सै, अर जो युगानुयुग जीवै सै, महिमा अर आदर अर धन्यवाद करैंगें,
फेर मन्नै सुर्ग म्ह, धरती पै, अर धरती कै तळै, अर समुन्दर की सारी बणाई होड़ चिज्जां नै, अर सारा किमे, जो उन म्ह सै, उन ताहीं न्यू कहन्दे सुण्या, के “जो सिंहासन पै बेठ्या सै, उसका, अर मेम्ने का धन्यवाद हो, मेम्ना ए सामर्थ, धन, ज्ञान, ताकत, आदर, महिमा के लायक सै, अर उसका राज्य, युगानुयुग रहवै।”
उसनै आकै उसकै सोळे हाथ तै जो सिंहासन पै बेठ्या था, वा किताब ले ली,
फेर मन्नै देख्या, के मेम्ने नै उन सात्तु मोहरां म्ह तै एक ताहीं खोल्या, अर उन च्यारु प्राणियाँ म्ह तै एक का गरजण जिसा शब्द सुण्या, के आ जाओ।
अर पहाड़ां, अर चट्टानां तै कहण लाग्गे, के “म्हारे ताहीं लह्को ल्यो, अर म्हारै ताहीं उसकै मुँह तै जो सिंहासन पै बेठ्या सै, अर मेम्ने कै प्रकोप तै लह्को ल्यो।
अर जिब मेम्ने नै सातमी मोंहर खोल्ली, तो सुर्ग म्ह आध्धे घंटे ताहीं सन्नाटा छा गया।