अर हम शारीरिक देह सरीखे घर म्ह रहन्दे होए बोझ तै दबे रोन्दे-पिटते रहवां सां, क्यूँके हम इसनै छोड़णा न्ही चाहन्दे, पर हम चाहवां सां के परमेसवर हमनै सुर्गीय देह देवै, ताके शारीरिक देह नाश होण कै बाद हमनै अनन्त राज्य म्ह सुर्गीय देह मिल जावै।
अर देक्खों, मेरा आणा एक चोर की ढाळ होगा जो चुपके तै आवै सै, धन्य वो सै, जो जागदा रहवै सै, अर अपणे लत्यां की चौकसी करै सै, के उघाड़ा कोनी हाँडै, अर माणस उसका उघाड़ापण ना देख पावै।