अउर ऊँ पंचे इआ नबा गाना गामँइ लागें, कि “अपनय इआ किताब काहीं लेंइ, अउर एखर मुहरँय खोलँय के काबिल हएन; काहेकि अपना बध होइके अपने खून से हरेक कुल, अउर भाँसा, अउर लोग, अउर जाति म से परमातिमा के खातिर लोगन काहीं मोल लिहेन हँय।
अउर जब मेम्ना तीसर मुहर खोलिन, त हम तिसरे प्रानी काहीं इआ कहत सुनेन, कि “आबा!” अउर हमहीं एकठे करिआ घोड़ा देखान, अउर ओखे सबार के हाँथे माहीं एकठे तउलना रहा हय;
अउर जब मेम्ना पचमी मुहर खोलिन, त हम स्वरग के बेदी के नीचे उनखे प्रानन काहीं देखेन, जउन परमातिमा के बचन के कारन, अउर उआ गबाही के कारन, जउन ऊँ पंचे दिहिन रहा हय, बध कीन गे रहे हँय।