पय अपने जीबन माहीं परमातिमा के बचन काहीं गहराई से लागू नहीं करँइ, एसे कुछ दिनन तक मानत हें, पय बाद माहीं जबहिन परमातिमा के बचन के कारन दुख अउर कस्ट मिलत हें, त ऊँ पंचे हरबिन परमातिमा के बचन काहीं मानब छोंड़ि देत हें।
पय अपने जीबन माहीं परमातिमा के बचन काहीं गहराई से लागू नहीं करँइ, एसे कुछ दिनन तक मानत हें, पय बाद माहीं जबहिन परमातिमा के बचन के कारन दुख अउर कस्ट मिलत हें, त ऊँ पंचे हरबिन परमातिमा के बचन काहीं मानब छोंड़ि देत हें।
पय जे कोऊ उआ पानी पी, जउन हम ओही देब, उआ पुनि अनन्तकाल तक पियासा न होई: बलकिन जउन पानी हम ओही देब, ओखे जीबन माहीं एकठे झिन्ना बन जई, अउर अनन्त जीबन देंइ के खातिर झिरिके बहतय रही।”
काहेकि सुरिज के ऊतय निकहा कड़ा घाम होत हय, अउर चारन काहीं झुराय डारत हय, उनखर फूल पत्ती झर जाती हईं, अउर उनखर सुन्दरता खतम होइ जात ही। इहइमेर से धनी मनई घलाय, अपने भाग-दउड़ के साथ खतम होइ जात हय।