तब परमातिमा के जउन मन्दिर स्वरग माहीं हय, उआ खोला ग, अउर उनखे मन्दिर माहीं, उनखे करार के सन्दूख देखाई दिहिस, अउर बिजुली अउर बोल अउर गरजब अउर भुँइडोल भें, अउर बड़े-बड़े ओला गिरें।
अउर स्वरग से हमहीं एकठे अइसन बोल सुनाई दिहिस, जउन पानी के खुब धारन कि नाईं, अउर बड़े गरजन कि नाईं रहा हय, अउर जउन बोल हम सुनेन, उआ अइसा रहा हय, जइसन बीना बजामँइ बाले बीना बजाय रहे होंय।
ओखे बाद हम बड़ी भीड़ कि नाईं, अउर खुब पानी कि नाईं, अउर गरजँय कि नाईं, बड़ी तेज अबाज सुनेन; “हालेलूय्याह! काहेकि प्रभू हमार पंचन के परमातिमा सर्बसक्तिमान राज करत हें।
अउर जब ऊँ किताब लइ लिहिन, त ऊँ चारिव जिन्दा प्रानी, अउर चउबीसव अँगुआ, उआ मेम्ना के आँगे गिर परें; अउर हरेक के हाँथ माहीं बीना अउर महकँइ बाली चीजन से भरे, सोने के खोरबा रहे हँय, ईं त पबित्र लोगन के प्राथना आहीं।
अउर जब मेम्ना तीसर मुहर खोलिन, त हम तिसरे प्रानी काहीं इआ कहत सुनेन, कि “आबा!” अउर हमहीं एकठे करिआ घोड़ा देखान, अउर ओखे सबार के हाँथे माहीं एकठे तउलना रहा हय;