अउर अगर कउनव मनई पबित्र आत्मा के अँगुआई से अनजान भाँसा माहीं धन्यबाद, इआ कि प्राथना करी, त जे कोऊ उआ भाँसा काहीं नहीं समझँय, त ओखे साथ कइसन आमीन करिहँय? काहेकि जउन धन्यबाद, इआ कि प्राथना उआ किहिस ही, ऊँ पंचे ओही नहीं समझँय।
अउर जब ऊँ किताब लइ लिहिन, त ऊँ चारिव जिन्दा प्रानी, अउर चउबीसव अँगुआ, उआ मेम्ना के आँगे गिर परें; अउर हरेक के हाँथ माहीं बीना अउर महकँइ बाली चीजन से भरे, सोने के खोरबा रहे हँय, ईं त पबित्र लोगन के प्राथना आहीं।