अउर ऊँ पंचे सिंहासन के आँगे, अउर चारिव प्रानिन अउर अँगुअन के आँगे, एकठे नबा गाना गाबत रहे हँय। अउर ऊँ एक लाख चवालिस हजार मनइन के अलाबा, जउन धरती के ऊपर से मोल लीन गे रहे हँय, कोऊ उआ गाना काहीं नहीं सिख सकत रहे आहीं।
अउर हम आगी से मिले सीसा कि नाईं, एकठे समुंद्र देखेन; अउर जउन मनई उआ खतरनाक जानबर के ऊपर, अउर ओखे मूरत के ऊपर, अउर ओखे संख्या के ऊपर बिजयी भे रहे हँय, उनहीं पंचन काहीं उआ सीसा के समुंद्र के लघे, परमातिमा के बीना काहीं लए ठाढ़ देखेन।
अउर जब ऊँ किताब लइ लिहिन, त ऊँ चारिव जिन्दा प्रानी, अउर चउबीसव अँगुआ, उआ मेम्ना के आँगे गिर परें; अउर हरेक के हाँथ माहीं बीना अउर महकँइ बाली चीजन से भरे, सोने के खोरबा रहे हँय, ईं त पबित्र लोगन के प्राथना आहीं।
अउर हम उन चारिव प्रानिन के बीच म से एकठे बोल इआ कहत सुनेन, कि “एक दिनार के सेर भर गोहूँ, अउर एक दिनार के तीन सेर जबा, पय जयतून के तेल अउर अंगूर के रस के नुकसान न किहा।”