11 “हे हमार पंचन के प्रभू, अउर परमातिमा, अपनय महिमा, अउर मान-सम्मान, अउर सामर्थ के काबिल हएन; काहेकि अपनय सगली चीजन काहीं बनाएन हय, अउर ऊँ अपनय के मरजी से बनाई गे रही हँय, अउर बनाई गई हँय।”
“हे मनइव तूँ पंचे इआ का करते हया? हमहूँ पंचे त तोंहरिन कि नाईं दुख-सुख भोगी मनई आहेन, अउर तोहईं खुसी के खबर सुनाइत हएन, कि तूँ पंचे ईं बेकार के चीजन से अलग होइके, जिन्दा परमातिमा के ऊपर बिसुआस करा, जउन स्वरग अउर धरती अउर समुंद्र अउर जउन कुछू उनमा हय बनाइन हीं।
पय ईं आखिरी दिनन माहीं अपने लड़िका के द्वारा हमसे पंचन से बातँय किहिन हीं, अउर उनहिन काहीं ऊँ सगले चीजन के बारिसदार ठहराइन हीं, अउर उनहिन के द्वारा ऊँ सगले संसार काहीं बनाइन हीं।
अउर ऊँ पंचे इआ नबा गाना गामँइ लागें, कि “अपनय इआ किताब काहीं लेंइ, अउर एखर मुहरँय खोलँय के काबिल हएन; काहेकि अपना बध होइके अपने खून से हरेक कुल, अउर भाँसा, अउर लोग, अउर जाति म से परमातिमा के खातिर लोगन काहीं मोल लिहेन हँय।