पय आमँइ बाले नबा जुग माहीं जाँइ के खातिर, अउर मरेन म से पुनि जिन्दा होंइ के खातिर, जेतने जन परमातिमा के नजर माहीं काबिल ठहरिहँय, उन माहीं काज-बिआह न होई।
एसे तूँ पंचे हर समय परमातिमा के बचन माहीं बने रहा, अउर प्राथना करत रहा, कि तूँ पंचे ईं आमँइ बाली घटनन से बचि जा, बलकिन जब मनई के लड़िका दुबारा अइहँय, तब तूँ पंचे उनखे आँगे ठाढ़ होंइ के काबिल बने रहा।”
अउर परमातिमा न्याय के समय मनइन काहीं, अनन्त आगी माहीं डारँइ के जउन सजा देंइ बाले हें, दउड़िके ओसे मनइन काहीं बचाबा, अउर परमातिमा के भय मानत दुसरे मनइन के ऊपर दया करा; पय दया करत समय उनखे पापन माहीं बेलकुल भागीदार न होया।”
फेर उहय समय एकठे बड़ा भुँइडोल भ, अउर सहर के दसमा हिस्सा गिर परा; अउर उआ भुँइडोल से सात हजार मनई मरिगें, अउर बाँकी डेराइगें, अउर स्वरग के परमातिमा के बड़ाई किहिन।
ईं ऊँ पंचे आहीं, जउन मेहेरिअन के साथ असुद्ध नहीं भे रहे आहीं, बलकिन कुमार हें; ईं उँइन पंचे आहीं, जउन जहाँ कहँव मेम्ना जात रहे हँय, ईं पंचे उनखे पीछे-पीछे चल देत रहे हँय, ईं पंचे त परमातिमा अउर मेम्ना के खातिर, पहिल फल होंइ के खातिर, मनइन म से मोल लीन गे हँय।
एहिन से हम तोंहईं इआ सलाह देइत हएन, कि आगी माहीं तपाबा सोन हमसे मोल लइ ल्या, कि धनी होइजा; अउर उजर ओन्हा लइ ल्या, कि ओही पहिरिके तोंहईं अपने नंगापन के लज्जा न होय, अउर अपने आँखिन माहीं लगामँइ के खातिर सुरमा लइ ल्या, कि तूँ देखँइ लागा।
जे बिजय पाई, ओही इहइमेर उजर ओन्हा पहिराबा जई, अउर हम ओखर नाम जीबन के किताब म से कउनव मेर से न काटब, पय ओखर नाम अपने पिता, अउर उनखे स्वरगदूतन के आँगे मान लेब।
अउर उनमा से हरेक जन काहीं, उजर ओन्हा दीन ग, अउर उनसे कहा ग, कि अउर थोरी देर तक अराम करा, जब तक तोंहार पंचन के साथी सेबक लोग, अउर भाई लोग, जउन तोंहरिन कि नाईं बध होंइ बाले हें, उनहूँ के घलाय गिनती पूर न होइ जाय।
एखे बाद हम देखेन, कि हरेक जाति, अउर कुल, अउर लोग अउर भाँसा म से एकठे अइसन बड़ी भीड़, जउने काहीं कोऊ गिन नहीं सकत रहा आय, उजर ओन्हा पहिरे, अउर अपने हाँथेन माहीं खजूर के डेरइअन काहीं लए, सिंहासन के आँगे, अउर मेम्ना के आँगे ठाढ़ रही ही।