“देखा, हम चोर कि नाईं अइत हएन; धन्य हय उआ मनई जउन जागत रहत हय, अउर अपने ओन्हन के रखबारी करत हय, कि जउने नंगा न फिरय, अउर मनई ओखे नंगापन काहीं देखे न पामँय।”
हम हरेक काहीं, जे इआ किताब के भबिस्यबानी के बातन काहीं सुनत हय, गबाही देइत हएन, अगर कउनव मनई, ईं बातन म कुछू बढ़ाई, त परमातिमा ऊँ बिपत्तिन काहीं, जउन इआ किताब माहीं लिखी हईं, ओखे ऊपर बढ़इहँय।
अगर कोऊ इआ किताब के भबिस्यबानी के बातन म से कुछू निकार डारी, त परमातिमा, जीबन के बिरबा अउर पबित्र सहर म से, जेखर बखान इआ किताब माहीं हय, ओखर भाग निकार देइहँय।
एसे सुधि करा, कि तूँ कइसन सिच्छा पाया तय, अउर सुने रहे हया, ओहिन माहीं बने रहा, अउर पस्चाताप करा, अगर तूँ जागत न रइहा, त हम चोर कि नाईं आय जाब, अउर तूँ बेलकुल न जाने पइहा, कि हम कउने घरी, तोंहरे ऊपर आय परब।