तब उआ दास के मालिक ओसे कहिन, कि ‘साबास, तूँ बिसुआस के काबिल अउर निकहे दास हया, तूँ थोर काहीं धन माहीं बिसुआस के काबिल रहे हया; एसे हम तोंहईं खुब चीजन के अधिकारी बनाउब। अउर तूँ जाइके अपने मालिक के खुसी माहीं सामिल होइजा।’
हे पिता परमातिमा, हम चाहित हएन, कि जिनहीं अपना हमहीं दिहेन हय, जहाँ हम रहब, उहाँ ऊँ पंचे हमरे साथ रहँय, कि जउने ऊँ पंचे हमरे उआ महिमा काहीं देखँय, जउन अपना हमहीं दिहेन हय, काहेकि अपना संसार काहीं बनामँइ से पहिले हमसे प्रेम किहेन हय।
एखे बाद हम देखेन, कि हरेक जाति, अउर कुल, अउर लोग अउर भाँसा म से एकठे अइसन बड़ी भीड़, जउने काहीं कोऊ गिन नहीं सकत रहा आय, उजर ओन्हा पहिरे, अउर अपने हाँथेन माहीं खजूर के डेरइअन काहीं लए, सिंहासन के आँगे, अउर मेम्ना के आँगे ठाढ़ रही ही।