पय जे कोऊ उआ पानी पी, जउन हम ओही देब, उआ पुनि अनन्तकाल तक पियासा न होई: बलकिन जउन पानी हम ओही देब, ओखे जीबन माहीं एकठे झिन्ना बन जई, अउर अनन्त जीबन देंइ के खातिर झिरिके बहतय रही।”
इआमेर से परमातिमा के दहिने हाँथ से सगलेन से ऊँच पद पाइके, अउर पिता से उआ पबित्र आत्मा पाइके जेखर वादा कीन ग रहा हय, अउर ऊँ उहय पबित्र आत्मा उड़ेल दिहिन, जेही अब तूँ पंचे देखते अउर सुनते हया।
अउर पुनि ऊँ हमसे कहिन, “ईं बातँय पूर होइ गई हँय। हम अल्फा अउर ओमेगा, आदि अउर अन्त आहेन। हम पिआसे काहीं, जीबन के पानी के झिन्ना म से सेंत-मेंत माहीं पिआउब।
ओखे बाद जिन सातठे स्वरगदूतन के लघे, सातठे अन्तिम बिपत्तिन से भरे खोरबा रहे हँय, उनमा से एक जने हमरे लघे आएँ, अउर हमसे बातँय कइके कहँइ लागें, “एँकई आबा, हम तोंहईं दुलहिन, अरथात मेम्ना के मेहेरिआ देखाउब।”
तब हम स्वरग माहीं, अउर धरती के ऊपर, अउर धरती के नीचे, अउर समुंद्र के बनाई सगली चीजन काहीं, अउर सब कुछ काहीं जउन उन माहीं हँय, इआ कहत सुनेन, कि जउन सिंहासन के ऊपर बइठ हें, उनखर, अउर मेम्ना के धन्यबाद, अउर मान-सम्मान, अउर महिमा अउर राज, जुगन-जुगन तक रहय।