अउर हम तोंहईं पंचन काहीं इहव सुध देबामँइ चाहित हएन, कि जउन स्वरगदूत, अपने पद काहीं निकहा से नहीं सम्हारे पाइन रहा आय, अउर अपने खुद के रहँइ के जघा काहीं छोंड़ि दिहिन रहा हय, प्रभू उनहूँ पंचन काहीं, उआ भयंकर न्याय के दिन के खातिर, सँकरिन माहीं बाँधिके, कबहूँ न खतम होंइ बाले अँधिआर माहीं रक्खे हें।
अउर ओही अथाह कुन्ड माहीं बन्द कइ दिहिन, अउर ओमाहीं मुहर लगाय दिहिन, कि उआ हजार बरिस के पूर होंइ तक, जाति-जाति के लोगन काहीं पुनि न भरमाबय। एखे बाद जरूरी हय, कि उआ थोरी देर के खातिर पुनि खोला जाय।