7 जेखर सुनँय के मन होय, उआ सुन लेय, कि पबित्र आत्मा मसीही मन्डलिन से का कहत हय, जउन बिजय पाई, ओही हम उआ जीबन के बिरबा म से, जउन परमातिमा के स्वरगराज माहीं हय, फर खाँइ काहीं देब।”
हे हमरे बाप कि नाईं मनइव, हम तोंहईं एसे लिखित हएन, कि जउन संसार के सुरुआत से हँय, तूँ पंचे उनहीं जनते हया, हे जमानव, हम तोहईं एसे लिखित हएन, कि तूँ पंचे उआ दुस्ट के ऊपर जीत पाय गया हय; हे पियार लड़िकव हम तोहईं एसे लिखित हएन, कि तूँ पंचे पिता परमातिमा काहीं जान गया हय।
पुनि हम स्वरग से इआ बोल सुनेन, “लिखा, जउन मनई प्रभू के ऊपर बिसुआस कइके मरत हें, ऊँ पंचे अब से धन्य हें।” अउर पबित्र आत्मा कहत हें, “हाँ, अब से ऊँ पंचे अपने सगले मेहनत से अराम पइहँय, काहेकि उनखर काम उनखे साथ होइ लेत हें।”
अउर हम आगी से मिले सीसा कि नाईं, एकठे समुंद्र देखेन; अउर जउन मनई उआ खतरनाक जानबर के ऊपर, अउर ओखे मूरत के ऊपर, अउर ओखे संख्या के ऊपर बिजयी भे रहे हँय, उनहीं पंचन काहीं उआ सीसा के समुंद्र के लघे, परमातिमा के बीना काहीं लए ठाढ़ देखेन।
अउर जेखर सुनँय के मन होय, उआ सुन लेय, कि पबित्र आत्मा मसीही मन्डलिन से का कहत हय; जे बिजय पाई, ओही हम, न देखाँइ बाले मन्ना म से देब; अउर ओही एकठे उजर पथरा घलाय देब; अउर उआ पथरा माहीं एकठे नाम घलाय लिखा होई, जेही ओही पामँइ बाले के अलाबा, अउर कोऊ न जानी।”
उआ सहर के सड़क के बीचव बीच बहत रही हय। नदी के इआ पार, अउर उआ पार, जीबन के बिरबा रहा हय; ओमाहीं बारा मेर के फर लागत रहे हँय, अउर उआ हरेक महीना फरत रहा हय; अउर उआ बिरबा के पत्तन से जाति-जाति के मनई नीक होइ जात रहे हँय।