इआ कहँइ लागें, “हे सर्बसक्तिमान प्रभू परमातिमा, जउन हएन, अउर जउन रहे हएन, हम पंचे अपना के धन्यबाद करित हएन, कि अपना अपने बड़ी सामर्थ काहीं काम म लइआइके राज किहेन हय।
अउर अपने-अपने मूँड़ेन के ऊपर धूधुर डरिहँय, अउर रोबत अउर कलपत, चिल्लाय-चिल्लाइके कइहँय, ‘हाय! हाय! इआ बड़ा सहर, जेखे धन-सम्पत्ती के द्वारा समुंद्र के सगले जिहाज बाले धनी होइगे रहे हँय, घरी भर माहीं उजरिगा।’