अउर अपने-अपने मूँड़ेन के ऊपर धूधुर डरिहँय, अउर रोबत अउर कलपत, चिल्लाय-चिल्लाइके कइहँय, ‘हाय! हाय! इआ बड़ा सहर, जेखे धन-सम्पत्ती के द्वारा समुंद्र के सगले जिहाज बाले धनी होइगे रहे हँय, घरी भर माहीं उजरिगा।’
जउने तूँ पंचे राजन के माँस, अउर मुखिअन के माँस, अउर सूरबीर मंसेरुअन के माँस, अउर घोड़न के अउर उनखे सबारन के माँस, अउर का अजाद, का दास, का छोट, का बड़े, सगले जनेन के माँस खा।”
ऊँ सातठे राजा घलाय आहीं, उनमा से पाँच जनेन के बिनास होइ चुका हय, अउर एकठे अबे हय, अउर एकठे अबे तक आबा नहीं, अउर जब अई त कुछ समय तक ओखर रहब घलाय जरूरी हय।