जेही जेल माहीं बन्द होंइ क हय, उआ जेल माहीं बन्द होई; जे कोऊ तलबार से मारी, उआ जरूर तलबार से मारा जई, अब पबित्र मनइन काहीं धीरज धरँय, अउर सताव काहीं सहत बिसुआस माहीं बने रहँय के समय हय।
त उआ परमातिमा के क्रोध के निछला मदिरा, जउन उनखे क्रोध के खोरबा माहीं डारी गे ही, ओही पी, अउर पबित्र स्वरगदूतन के आँगे, अउर मेम्ना के आँगे, आगी अउर गन्धक के पीरा माहीं परी।
ओखे बाद एकठे अउर स्वरगदूत, जिनहीं आगी के ऊपर अधिकार रहा हय, बेदी म से निकरें, अउर जिनखे लघे चोंख हँसिया रही हय, उनसे खुब चन्डे कहिन, “आपन चोंख हँसिया लगाइके, धरती के अंगूर के गुच्छन काहीं काटि ल्या, काहेकि उनखर अंगूर पकि चुके हँय।”
काहेकि उनखर निरनय सच्चे अउर न्यायपूर्न हें। अउर ऊँ उआ बड़ी बेस्या काहीं, जउन अपने ब्यभिचार से धरती काहीं भ्रस्ट करत रही हय, सजा दिहिन हीं, अउर ओसे अपने दासन के खून के बदला लिहिन हीं।”
अउर जब मेम्ना पचमी मुहर खोलिन, त हम स्वरग के बेदी के नीचे उनखे प्रानन काहीं देखेन, जउन परमातिमा के बचन के कारन, अउर उआ गबाही के कारन, जउन ऊँ पंचे दिहिन रहा हय, बध कीन गे रहे हँय।