त उआ परमातिमा के क्रोध के निछला मदिरा, जउन उनखे क्रोध के खोरबा माहीं डारी गे ही, ओही पी, अउर पबित्र स्वरगदूतन के आँगे, अउर मेम्ना के आँगे, आगी अउर गन्धक के पीरा माहीं परी।
अउर जउने सातठे स्वरगदूतन के लघे ऊँ सातठे खोरबा रहे हँय, उनमा से एक जने आइके हमसे इआ कहिन, “इहाँ आबा, हम तोंहईं उआ बड़ी बेस्या के सजा देखाई, जउन खुब पानी माहीं बइठ ही,
अउर जाति-जाति काहीं मारँइ के खातिर उनखे मुँहे से एकठे चोंख तलबार निकरत ही, ऊँ लोहे के राजदन्ड लए, उनखे ऊपर राज करिहँय, अउर ऊँ सर्बसक्तिमान परमातिमा के, भयानक कोप के जलजलाहट के मदिरा के कुन्ड माहीं अंगूर रउँदिहँय।
ओखे बाद जिन सातठे स्वरगदूतन के लघे, सातठे अन्तिम बिपत्तिन से भरे खोरबा रहे हँय, उनमा से एक जने हमरे लघे आएँ, अउर हमसे बातँय कइके कहँइ लागें, “एँकई आबा, हम तोंहईं दुलहिन, अरथात मेम्ना के मेहेरिआ देखाउब।”
अउर जब हम पुनि देखेन, त अकास के बीच माहीं एकठे चील्ह काहीं उड़त, अउर खुब चन्डे इआ कहत सुनेन, “ऊँ तिनहूँ स्वरगदूतन के तुरहिन के बोल के कारन, जिनखर फूँकब अबे बाँकी हय, धरती माहीं रहँइ बालेन के ऊपर घोर बिपत्ती आमँइ बाली ही।”
अउर बाँकी मनई जउन ऊँ महामारिन से नहीं मरे रहे आहीं, अपने हाँथन के कामन से मन नहीं फिराइन, ऊँ पंचे बुरी आत्मन के पूजा करत रहिगें, अउर सोन-चाँदी, अउर पीतल अउर पथरा, अउर लकड़ी, के मूरतिन के पूजा करब घलाय नहीं छोंड़िन, जउन न देख सकती आहीं, न सुन सकती आहीं, न चल सकती आहीं।