काहेकि घिनहे बिचार करब, कतल करब, दुसरे के मेहेरिआ से नजायज सम्बन्ध रक्खब, ब्यभिचार करब, चोरी करब, लबरी गबाही देब, अउर दुसरे के बुराई करब, ईं सगली बातँय करँइ के बिचार मनय से निकरत हय।
अउर बचन मनई के रूप लइके संसार माहीं आएँ, अउर ऊँ किरपा अउर सच्चाई से भरपूर होइके, हमरे पंचन के बीच माहीं निबास किहिन, अउर हम पंचे उनखे महिमा काहीं, पिता परमातिमा के एकलउते लड़िका कि नाईं देखे हएन।
उनखे मुँहे से हमेसा बुराइन निकरत ही, जइसन खुली कब्र से दुर्गन्ध आबत ही, उनखे मुँह से हमेसा छल के बात निकरत ही, अउर उनखे मुँहे से साँप के बिस कि नाईं खतरनाक बातँय निकरती हईं।
काहेकि इआ धरती माहीं एकठे तम्बू बनाबा ग रहा हय, जउने के पहिल भाग माहीं दिया धरँय के स्टैन्ड, अउर मेज, अउर भेंट के रोटी रही हँय, अउर उआ भाग पबित्र जघा कहाबत रही हय।
काहेकि मसीह, हाँथ के बनाए उआ महापबित्र जघा माहीं नहीं गें, जउन सच्चे महापबित्र जघा के नमूना के मुताबिक बनाई गे रही हय। बलकिन सीधे स्वरग माहीं चलेगें। जउने हमरे पंचन के खातिर स्वरग माहीं परमातिमा के आँगे हमेसा देखाई देंय।
हे स्वरग, अउर हे सगले पबित्र मनइव, अउर यीसु के खास चेलव, अउर परमातिमा के सँदेस बतामँइ बालेव, ओखे ऊपर आनन्द करा, काहेकि परमातिमा न्याय कइके, ओसे तोंहार पंचन के बदला लिहिन हीं।”
ईं बातन के बाद, जब हम नजर उठाइके देखेन, त का देखित हएन, कि स्वरग माहीं एकठे दुअरा खुला हय; अउर जेही हम पहिले तुरही कि नाईं अबाज से, अपने साथ बातँय करत सुने रहेन हय, उँइन कहत हें, कि “इहाँ ऊपर आय जा, अउर हम ऊँ बातँय तोंहईं देखाउब, जिनखर ईं बातन के बाद पूर होब जरूरी हय।”
तब हम स्वरग माहीं, अउर धरती के ऊपर, अउर धरती के नीचे, अउर समुंद्र के बनाई सगली चीजन काहीं, अउर सब कुछ काहीं जउन उन माहीं हँय, इआ कहत सुनेन, कि जउन सिंहासन के ऊपर बइठ हें, उनखर, अउर मेम्ना के धन्यबाद, अउर मान-सम्मान, अउर महिमा अउर राज, जुगन-जुगन तक रहय।
एखे बाद हम देखेन, कि हरेक जाति, अउर कुल, अउर लोग अउर भाँसा म से एकठे अइसन बड़ी भीड़, जउने काहीं कोऊ गिन नहीं सकत रहा आय, उजर ओन्हा पहिरे, अउर अपने हाँथेन माहीं खजूर के डेरइअन काहीं लए, सिंहासन के आँगे, अउर मेम्ना के आँगे ठाढ़ रही ही।