“हे मनइव तूँ पंचे इआ का करते हया? हमहूँ पंचे त तोंहरिन कि नाईं दुख-सुख भोगी मनई आहेन, अउर तोहईं खुसी के खबर सुनाइत हएन, कि तूँ पंचे ईं बेकार के चीजन से अलग होइके, जिन्दा परमातिमा के ऊपर बिसुआस करा, जउन स्वरग अउर धरती अउर समुंद्र अउर जउन कुछू उनमा हय बनाइन हीं।
काहेकि जब हम सहर माहीं घूमत रहेन हय, उआ समय तोंहरे पूजँय बाली चीजन काहीं देखत रहेन हँय, त एकठे अइसन बेदी घलाय पाएन, जउने माहीं लिखा रहा हय, कि ‘अनजान परमातिमा के खातिर बेदी।’ एसे जिनहीं तूँ पंचे बिना देखे पुजते हया, हम तोंहईं पंचन काहीं उनहिन के खबर सुनाइत हएन।
जब से संसार के रचना भे ही, परमातिमा के न देखाई देंइ बाली बिसेसता अरथात अनन्त सक्ती, अउर परमातिमा के दिब्य गुन साफ-साफ देखाई देत हें, काहेकि ऊँ चीजन से ऊँ पूरी तरह से जाने जाय सकत हें, जउने काहीं परमातिमा रचिन हीं। एसे अब मनइन के लघे कउनव बहाना नहिं आय।
“हे हमार पंचन के प्रभू, अउर परमातिमा, अपनय महिमा, अउर मान-सम्मान, अउर सामर्थ के काबिल हएन; काहेकि अपनय सगली चीजन काहीं बनाएन हय, अउर ऊँ अपनय के मरजी से बनाई गे रही हँय, अउर बनाई गई हँय।”