52 ऊँ पंचे उनहीं जबाब दिहिन, “का तुहूँ गलील प्रदेस के आह्या, पबित्र सास्त्र काहीं पढ़िके देखा, कि गलील प्रदेस से कउनव परमातिमा के सँदेस बतामँइ बाला, कबहूँ पइदा न होई।”
तब नतनएल फिलिप्पुस से कहिन, “का नासरत गाँव से घलाय कउनव निकही चीज पइदा होइ सकत ही?” फिलिप्पुस उनसे कहिन, “चलिके खुदय देख ल्या।”
तूँ पंचे पबित्र सास्त्र माहीं ढुँढ़ते हया, काहेकि तूँ पंचे सोचते हया, कि ओहिन माहीं अनन्त जीबन मिलत हय, पय पबित्र सास्त्र हमरेन बारे माहीं गबाही देत हय।
अउर कुछ जने इहव कहिन, कि “ईं मसीह आहीं”, पय कुछ जने कहिन “ईं न होंहीं, का मसीह गलील प्रदेस अइहँय?”
एखे बाद ऊँ पंचे सगले जन उहाँ से अपने-अपने घर चलेगें।
ऊँ पंचे ओही जबाब दिहिन, कि “तँय त जनमँय से पापी आहे, तँय हमहीं का सिखउते हए? अउर यहूदी धारमिक अँगुआ लोग ओही सभाघर से बहिरे निकार दिहिन।”