काहेकि समय-समय माहीं परमातिमा के स्वरगदूत तलाव माहीं उतरिके, पानी हलाबत रहे हँय: पानी के हलतय जे कोऊ पहिले पानी माहीं घुस जात रहा हय, उआ नीक होइ जात रहा हय, चाह ओखे कउनव बिमारी रही होय।
एसे हे भाई-बहिनिव, प्रभू के दुसराय आमँइ तक धीरज धरा, उआ किसान के सुध करा, जउन अपने खेत के कीमती फसल के आसा रखिके, पहिल अउर अन्तिम बरसा होंइ तक धीरज धरत हय।