जउन बात हम तोंहसे कहेन तय, त ओही सुधि कए रह्या: कि दास अपने मालिक से बड़ा नहीं होय, अगर ऊँ पंचे हमहीं सताइन हीं, त तोंहऊँ पंचन काहीं सतइहँय; अगर ऊँ पंचे हमार बात मानिन हीं, त तोंहरव बात मनि हँय।
अउर हमहीं पंचन काहीं मसीह के प्रेम से कोऊ अलग नहीं कइ सकय, चाह उआ दुख-मुसीबत होय, चाह हमरे ऊपर अत्याचार होय, चाह अकाल होय, चाह पहिनँय के खातिर ओन्हव न होय, चाह उआ जोखिम होय, अउर चाह उआ तलबारय काहे न होय?