अउर अगर उआ उनहूँ पंचन के बात काहीं न मानय, त मसीही मन्डली से बताय द्या, पय अगर उआ मसीही मन्डली के बात काहीं घलाय न मानय, त तूँ ओही परमातिमा से न डेराँइ बाले, अउर चुंगी लेंइ बाले बुरे मनइन कि नाईं समझा।
तब ऊँ पंचे सिकन्दर नाम के एकठे यहूदी मनई काहीं जेही, ऊँ पंचे चुनिन रहा हय, भीड़ के मनइन म से ओही आँगे किहिन, अउर सिकन्दर अपने हाँथे से इसारा कइके, सगले मनइन के आँगे जबाब देंइ चाहत रहा हय।
जबकि अबे हम तोंहसे दूरी हएन, तऊ ईं बातन काहीं तोंहरे खातिर लिख रहेन हय, कि जब हम तोंहरे बीच माहीं अउब त, जउन अधिकार हमहीं प्रभू दिहिन हीं, त उआ तोंहरे फायदय के खातिर दिहिन हीं, हानि के खातिर न होय, त तूँ पंचे इआ ध्यान रख्या, कि हमहीं ओखर उपयोग कड़ाई से न करँइ परय।
काहेकि मनई स्वार्थी, जादा धन कमाय के लालची, खुद के कामन के बड़ाई करँइ बाले, खुद काहीं दुसरे से बड़ा मानँइ बाले, दुसरे के बुराई करँइ बाले, महतारी-बाप के कहा-बतान न मानँइ बाले, जउन उनखर मदत करी, ओखर उपकार न मानँइ बाले, बुरे काम कइके परमातिमा के ऊपर बिसुआस न करँइ बाले,
अउर तूँ पंचे उआ उपदेस काहीं बिसराय दिहा हय, जउन तोंहईं पंचन काहीं लड़िकन कि नाईं दीन ग रहा हय, कि “हे बेटा, प्रभू के डाँट-फटकार काहीं तुच्छ न जान्या, अउर जब ऊँ तोंहईं डाँटँइ त बुरा न मान्या।
तब हम एकठे खतरनाक जानबर काहीं समुंद्र से निकरत देखेन, ओखे दसठे सींग अउर सातठे मूँड़ रहे हँय; ओखे सींगन माहीं दसठे राजमुकुट अउर ओखे मूँड़ेन के ऊपर परमातिमा के निन्दा के नाम लिखे रहे हँय।