मानि ल्या, कि अगर हमहीं इआ बरदान मिल जाय, कि हम मनइन के अउर स्वरगदूतन के सगली भाँसन काहीं बोल सकी, पय दुसरेन से प्रेम न रक्खी त हमहीं का फायदा होई? काहेकि हमार बोलब पीतल के खुब बड़ी घन्टी अउर झाँझ के बोल कि नाईं होई।
अउर प्रेम करँइ बाला मनई, अपने जीबन माहीं धीरज रक्खत हय, दुसरे के ऊपर किरपा करत हय; अउर दुसरे के ऊपर जलन नहीं रक्खय; अउर उआ खुद के बड़ाई नहीं करय; अउर उआ घमन्डिव नहीं होय,
अउर प्रभू अइसन करँय, कि जइसन प्रेम हम पंचे तोंहसे रक्खित हएन; उहयमेर तोंहरव प्रेम आपस माहीं एक दुसरे के साथ, अउर सगले मनइन के साथ बढ़य, अउर मजबूत होत जाय।
हे भाई-बहिनिव, तोंहरे बारे माहीं हमहीं पंचन काहीं, हर समय परमातिमा काहीं धन्यबाद देत रहँइ चाही, अउर इआ उचितव हय, एसे कि तोंहार बिसुआस खुब बाढ़त जात हय, अउर तोंहार सगलेन के प्रेम घलाय आपस माहीं खुब बाढ़त जात हय।
पय हे हमार भाई-बहिनिव, सगलेन से बड़ी बात इआ हय, कि कसम न खया; न त स्वरग के, न धरती के, न कउनव चीज के, पय तोंहार बातचीत हाँ के हाँ, अउर नहीं के नहीं होय, जउने तूँ पंचे दन्ड पामँइ बाले न ठहरा।